मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

अपनत्व

प्रेमी को प्रेमी का होना भर ही काफी होता है
मन में श्रद्धा हो तो इक पत्थर ही काफी होता है
गैरों के संग रहना महलों में भी रास नहीं आता
अपनापन मिल जाये तो कच्चा घर ही काफी होता है

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

मन में श्रद्धा हो तो इक पत्थर ही काफी होता है
.....gr8

Unknown said...

accha tujhe badi akal aa gayi hai

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