मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

निश्छल सौंदर्य

उस से नहीं मिलूं तो मन में बेचैनी-सी रहती है
उसकी आँखों में इक पावन देव नदी-सी बहती है
उसके गोरे, नर्म, गुलाबी पाँव बहुत ही सुन्दर हैं
उसकी बातें निश्छलता का ठहरा हुआ समंदर हैं
उसकी वाणी मुझको सब वेदों से सच्ची लगती है
उसकी मीठी-मीठी बोली कितनी अच्छी लगती है
वो न जाने क्यों मुझसे अनजानी बातें करती है
मन की मलिका वो ढेरों मनमानी बातें करती है
वो अक्सर मेरे कंधे पर सर रखकर सो जाती है
वो जिससे दो घड़ी बोल ले उसकी ही हो जाती है
मुझको उसके बालों को सहलाने में सुख मिलता है
उसकी कोमल बांहों में खो जाने में सुख मिलता है
वो मेरी सूनी आँखों में काजल बनकर लेटी है
वो गदराई-सी लड़की मेरी छोटी-सी बेटी है

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