मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

मुहब्बत के तराने में

अजब-सी बात होती है मुहब्बत के तराने में
क़तल-दर-क़त्ल होते हैं सनम के मुस्कुराने में
मज़ा उनको भी आता है मज़ा हमको भी आता है
उन्हें नज़रें चुराने में हमें नज़रें मिलाने में

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