मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

तुमसे मिलना

तुमसे मिलना
जैसे हाईवे पर दौड़ती गाड़ी
दो पल को ठहरे
किसी पैट्रोल पम्प पर
...जैसे परवाज़ की ओर बढ़ता परिंदा
यकायक उतर आये
धरती पर
पानी की चाह में
...जैसे बहुत लंबी
मरुथली यात्रा के दौरान
हरे पेड़ की छाँव!

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