हंसी-ख़ुशी के वो लमहे हज़ार बचपन के
ए काश लौटते दिन एक बार बचपन के
नहीं दिमाग न थे होशियार बचपन के
तभी तो दिन थे बड़े खुशगवार बचपन के
बड़े हुए तो कई लोग मिल गए लेकिन
बिछड़ चुके हैं सभी दोस्त-यार बचपन के
जो जिस्म को नही दिल को सुकून देते थे
बहुत अजीब थे वो रोज़गार बचपन के
सुबह लड़े तो शाम फिर से साथ खेल लिए
कभी रहे नहीं मन में गुबार बचपन के
सभी को चुपके से हर राज़ बता देते थे
सभी तो हो गए थे राज़दार बचपन के
ढले जो शाम तो गलियों में खेलने निकलें
बड़े हसीन थे वो इंतज़ार बचपन के
बड़ों पे ज़िद रही छोटों पे इक रुआब रहा
कहाँ बचे हैं अब वो इख्तियार बचपन के
ज़हन में कौंध के होंठों पे बिखर जाते हैं
वो वाकयात हैं जो बेशुमार बचपन के
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
सुंदर रचना
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
koi louta de mere bachapan ko,narayan narayan
ज़हन में कौंध के होंठों पे बिखर जाते हैं
वो वाकयात हैं जो बेशुमार बचपन के
बहुत सुंदर भाव. स्वागत.
बहुत सुन्दर रचना है फिर से बचपन याद आ गया।धन्यवाद।
Post a Comment