मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

दीपावली

प्रेम, शांति और सौम्यता, सबका हो विस्तार।
सबके जीवन में भरे, प्यार, प्यार और प्यार॥

जीवन बाती से जुड़े, पुरुषार्थों की आग।
हर आँगन संदीप्त हो, जाय अँधेरा भाग॥

पावन पुष्पों से गुंथें, ऐसे बन्धनवार।
न्हें लगाकर सज उठें, सबके तोरणद्वार॥

दिव्य-दिव्य हों कल्पना, दिव्य-दिव्य हों रंग।
दिव्य अल्पनायें बनें, हों सब दिव्य प्रसंग॥

भोर समीरों में घुलें, गेंदे के मकरंद।
सांझ ढले कर्पूर की, हर दिसि भरे सुगन्ध॥

लक्ष्मी का अवतार हो, हाथ लिए संतोष।
जिस से खाली हो सकें, सभी लालसा कोष॥

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