मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

प्यार के रंगीन पल

आप संग बीते लम्हे पीड़ा अजानी हो गए
प्यार के रंगीन पल क़िस्से-कहानी हो गए
हर किसी के ख़्वाब जब से आसमानी हो गए
पाप के और पुण्य के तब्दील मानी हो गए
सर्द था मौसम तो बहती धार भी जम-सी गई
धूप पड़ते ही मरासिम पानी-पानी हो गए
वक़्त की हल्की-सी करवट का तमाशा देखिये
ये सड़क के लोग कितने खानदानी हो गए
मुफ़लिसी में सारी बातें गालियाँ बनकर चुभीं
दौलतें बरसीं तो उनके और मानी हो गए
आपसे मिलकर हमारे दिन हुए गुलदाउदी
आपको छूकर तसव्वुर रातरानी हो गए

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