मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

मेरी राहों पे चलकर देख लेना

मेरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समंदर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर आँख भरकर देख लेना
मेरी बातों में राहें बोलतीं हैं
मेरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना
मुझे इक बेतआबी दे गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मेरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना

एक प्यादे से मात पलटेगी

हर नई रुत के साथ पलटेगी
ख़ुश्बू-ए-क़ायनात पलटेगी
ये सियासत है इस सियासत में
एक प्यादे से मात पलटेगी
किसकी बातों का क्या यकीन करें
पीठ पलटेगी बात पलटेगी
रंग परछाई तक का बदलेगा
सुब्ह होगी तो रात पलटेगी
तुम संभल कर बस अपनी चाल चलो
इक न इक दिन बिसात पलटेगी
वक्त ज़ब-जब भी करवटें लेगा
ज़िन्दगी साथ-साथ पलटेगी

अहसास का होना अच्छा

उनको लगता है ये चांदी औ' ये सोना अच्छा
मैं समझता हूँ कि अहसास का होना अच्छा
मैंने ये देख के मेले में लुटा दी दौलत
मुर्दा दौलत से तो बच्चों का खिलोना अच्छा
जिसके आगोश में घुट-घुट के मर गए रिश्ते
ऐसी चुप्पी है बुरी; टूट के रोना अच्छा
जिसके खो जाने से रिश्ते की उमर बढ़ जाए
जितनी जल्दी हो उस अभिमान का खोना अच्छा
अश्क़ तेज़ाब हुआ करता है दिल में घुटकर
दिल गलाने से तो पलकों का भिगोना अच्छा
मिरे होते हुए भी कोई मिरा घर लूटे
फिर तो मुझसे मिरे खेतों का डरोना अच्छा
जबकि हर पेड़ फ़क़त बीच में उगना चाहे
ऐसे माहौल में इस बाग़ का कोना अच्छा
राम ख़ुद से भी पराए हुए राजा बनकर
ऐसे महलों से वो जंगल का बिछोना अच्छा
उसके लगने से मेरा मन भी सँवर जाता था
अब के श्रृंगार से अम्मा का दिठौना अच्छा
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