मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

ज़िंदगी की ग़ज़ल

कितनी मुश्किल है ज़िंदगी की ग़ज़ल
काफिया तंग बहर छोटी है
ख़ूब लम्बी हैं दर्द की रातें
और खुशियों की सहर छोटी है
खारे पानी का अथाह सागर है
मीठे पानी की नहर छोटी है
सागरों पर तो मर मिटी नदियां
सूखे खेतों में नहर छोटी है
ये मुक़द्दर है मेरी किश्ती का
दूर साहिल है लहर छोटी है

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