मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

वक्त ठहरते देखा

हमने सूरज को यहाँ डूब के मरते देखा
और जुगनू से अंधेरों को संवरते देखा
तूने जिस बात पे मुस्कान के परदे डाले
हमने उसको तेरी आँखों में उतरते देखा
तेरी ग़ज़लों के रहे मौजू-ए-गेसू-ए-सनम
हमने रातों में नदीदों को सिहरते देखा
एक लम्हे में तेरे साथ कई रुत गुज़रीं
तेरे जाने पे मगर वक्त ठहरते देखा
लोग कहते हैं बस इक शख्स मारा है लेकिन
क्या किसी ने वहां सपनों को बिखरते देखा

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