मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

भाव

हम कलम थाम कर सोचते रह गए
भाव आँसू बने आंख से बह गए
इक ग़ज़ल कागज़ों पर उतर तो गयी
दर्द दिल के मगर अनकहे रह गए

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