मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

दस्तूर

यहाँ चलता नहीं दस्तूर कोई भी ज़माने का
गज़ब है लुत्फ़ इन राहों में सब कुछ हार जाने का
नज़र मिलते ही दिल काबू से बाहर जान पड़ता है
मुहब्बत में कहाँ मिलता है मौक़ा आजमाने का

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