मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

तीखे दोहे

रटी-रटाई प्रार्थना, सुना-सुनाया ज्ञान।
बोर किया भगवान को, कैसे हो उत्थान॥

सब चोरी का माल है, वाणी-भजन-कुरान।
प्रेम-पत्र लिखवा रहा, गैरों से नादान॥

ईश्वर, बालक, माँ, कवि, ये सब एक समान।
इन्हें प्रेम से जीत लो, छोड़ो वेद -पुराण॥

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

in teekhe dohon ka jawaab nahi......kamaal hai

Unknown said...

is bakwas ka jawab nahi wah wah kahase training li hai be?

Text selection Lock by Hindi Blog Tips
विजेट आपके ब्लॉग पर