मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

तू भी सब सा निकला

जो भी जितना सच्चा निकला
वो ही उतना तनहा निकला
सुख के छोटे से कतरे में
गम का पूरा दरिया निकला
कुछ के वरक ज़रा मंहगे थे
माल सभी का हल्का निकला
तुझको खुद सा समझा मैंने
लेकिन तू भी सब सा निकला
कौन यहाँ कह पाया सब कुछ
कम ही निकला जितना निकला

No comments:

Text selection Lock by Hindi Blog Tips
विजेट आपके ब्लॉग पर