मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

यादों के ताजमहल में

मैंने मुस्कानें भोगी हैं अब मैं ग़म भी सह लूंगा
स्मृतियाँ दिल में उफनीं तो आँसू बनकर बह लूंगा
तुम सपनों की बुनियादों पर रंगमहल चिनवा लेना
मैं यादों के ताजमहल में शासक बनकर रह लूंगा

1 comment:

Anonymous said...

itna akelapan!
adbhut hai!!!

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