मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

आदमी यकसा मिला

हर कोई खुद को यहाँ कुछ खास बतलाता मिला
हर किसी में ढूँढने पर आदमी यकसा मिला
आज के इस दौर में आदाब की कीमत कहाँ
वो कलंदर हो गया जो सबको ठुकराता मिला
हर दफा इक बेकारारी उन से मिलने की रही
हर दफा ऐसा लगा इस बार भी बेजा मिला
जिसने उमीदें रखीं ओर कोशिशें हरगिज़ न कीं
उसको अंजाम-ए-सफ़र रुसवाई का तोहफा मिला
रात जब सोया तो हमबिस्तर रहा उनका ख़्याल
सुबह जब जागा तो होंठों पर कोई बोसा मिला

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