मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

कवि

इक दफ़ा पलकों को अश्कों में भिगो लेते हैं हम
और फिर होंठों पे इक मुस्कान बो लेते हैं हम
गीत गाते वक़्त रुंध ना जाये स्वर इसके लिए
गीत लिखते वक़्त ही जी भर के रो लेते हैं हम

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