मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

सूरज

चंद पहरों की जिंदगानी में
कितने चेहरे बदल गया सूरज
दो घड़ी आँख से ओझल क्या हुआ
लोग कहते हैं ढल गया सूरज
रात गहराई तो समझ आया
सारी दुनिया को छल गया सूरज
आज फिर रोज़ की तरह डूबा
कैसे कह दें संभल गया सूरज

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