मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

प्यार

ज़माने ने सुरों की आह को झंकार माना है
कहीं संवेदना जीती तो उसको हार माना है
बड़े बेईमान मानी तय किये हैं भावनाओं के
जहाँ दो दिल तड़पते हों उसी को प्यार माना है

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नही कुछ जीत का मतलब,
नही कुछ हार का मतलब।
जहाँ संवेदना जीवित,
वहाँ है प्यार का मतलब।।

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