बस इतना सोच कर हम लोग अब खामोश रहते हैं
कि जब हम बोलते हैं और सब खामोश रहते हैं
यहाँ आदाब तक को लोग बे-अदबी समझते हैं
यही सब देख कर हम बा-अदब खामोश रहते हैं
वो चुप हैं तो समझ लेना उन्हें सब कुछ पता होगा
जिन्हें थोड़ा पता होता है कब खामोश रहते हैं
मुहब्बत एक दिन ऐसा भी मंज़र पेश लाती है
निगाहें बोलती हैं और लब खामोश रहते हैं
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