मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

खामोश रहते हैं

बस इतना सोच कर हम लोग अब खामोश रहते हैं
कि जब हम बोलते हैं और सब खामोश रहते हैं
यहाँ आदाब तक को लोग बे-अदबी समझते हैं
यही सब देख कर हम बा-अदब खामोश रहते हैं
वो चुप हैं तो समझ लेना उन्हें सब कुछ पता होगा
जिन्हें थोड़ा पता होता है कब खामोश रहते हैं
मुहब्बत एक दिन ऐसा भी मंज़र पेश लाती है
निगाहें बोलती हैं और लब खामोश रहते हैं

No comments:

Text selection Lock by Hindi Blog Tips
विजेट आपके ब्लॉग पर