मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

त्यौहार

जब से हम करने लगे, बात-बात में जंग
तब से फीके पड़ गए, त्यौहारों के रंग
धूम-धड़ाका बन गया, दीपों का त्यौहार
शोर-शराबा हो गया, होली का हुड़दंग

1 comment:

Anonymous said...

kadva sach hai

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