मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

निसार

तेरे दामन में प्यार भर देंगे
तेरे मन में श्रृंगार भर देंगे
कब तलक तू हमें न चाहेगा
खुद को तुझ पर निसार कर देंगे

1 comment:

Unknown said...

mai teri bakwass par nisaar ho gaya

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