मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

वरुण गांधी

वरुण गांधी प्रकरण को सुनने के बाद
मुझे मेनका गांधी की ग़लती बहुत साल रही थी
क्योंकि जब वरुण को बोलने की तमीज़ सिखानी थी
तब मेनका जी कुत्ते-बिल्ली पाल रही थी
अब उनके पाले हुए जंतु तो राजनीति कि गलियों में
मस्ती से डोल रहे हैं
औए बेचारे वरुण
संस्कारों के अभाव में
पशुता की भाषा
बोल रहे हैं

1 comment:

ab inconvenienti said...

तुमपर या तुम्हारे अपनों पर कोई गलत तत्त्व हाथ उठाएगा तो क्या उसके हाथ नहीं काटोगे? या निमंत्रण दोगे की 'महोदय, मज़ा नहीं आया, इत्मिनान से कुछ और लात-घूँसे जमाइये!'

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