मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

माँ मैंने अक्सर देखा है

माँ मैंने अक्सर देखा है
तुमको कोरें गीलीं करते
चौके में ही खड़ी-खड़ी तुम
चुपके-चुपके रो लेती हो
जब चकले पर एक चपाती
बेलन से बिलने लगती है
ऑंसू की दो बूंदें टप-टप
छलक-छलक कर गिर पड़ती हैं
चकले वाली गोल चपाती
गरम तवे पर चढ़ जाती है
फिर थोड़ा सा आटा लेकर
नई चपाती कर लेती हो
एक चपाती गरम तवे पर
एक चपाती चकले ऊपर
एक चपाती चुपड़ी करके
चौके से बाहर आती हो
"ये तो ले लो!
सब्ज़ी लाऊँ?
पापड़ भूनूँ?
लौंजी दे दूँ?"
-कहते कहते एक चपाती
थाली में सरका जाती हो
फिर सब्ज़ी ले कर आती हो
एक हाथ में करछी पकड़े
कमरे की चौखट से सट कर
कहती हो- "सब ठीक बना है?
गरम मसाला कम डाला है।
बच्चों को नुक़सान करेगा।"
सब टीवी में डूबे-डूबे
हुंकारा सा भर देते हैं
तुम चौके में वापस जाकर
एक चपाती गरम तवे की
एक चपाती चकले वाली
एक चपाती बच कर लौटी
सेंक-साक कर, रुखी-चुपड़ी
इक थाली में रख लेती हो
ले कर कमरे में आती हो
फिर जा कर पानी लाती हो
फिर अपना खाना खाती हो
तब दोनों ऑंखों की कोरें
फिर गीलीं होने लगती हैं
तभी याद आता है तुमको
"अरे! गैस पर दूध रखा है
उफन जाएगा!
मंदा कर दूँ...."

7 comments:

मनोज कुमार सिंह said...

बहुत सुन्‍दर प्रस्‍तुति करण

झरोखा said...

यार चिराग भाई,
सच कहूँ तो अब तुमसे जलन होने लगी है || क्या मुझे अपने घर का पता दे सकते हैं (सभी अप्रकाशित रचनायों को चुराने का मन है )

Unknown said...

Very true....truth is ever green..
Keep it up dost..likhte jao

श्यामल सुमन said...

इस रचना के मूल में ममता का संदेश।
माँ की ममता में छुपी है अनुराग बिशेष।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Arun Mittal "Adbhut" said...
This comment has been removed by the author.
Arun Mittal "Adbhut" said...
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Arun Mittal "Adbhut" said...

चिराग भाई बस करो .......... रुला ही दिया ... इतना अच्छा भी मत लिखा करो यार

सच कहता हूँ ऐसी कवितायेँ बहुत कम पढने को मिलती हैं .... ये कविता तो हिंदी साहित्य की थाती है ............ बहुत बहुत बधाई
दरअसल चिराग भाई अक्सर ऐसा कहते हैं जिसे कहना तो हर कोई चाहता है पर कह नहीं पाता..........
निश्चित ही अद्भुत कविता है

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