मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

पहुँच

किसी की ज़िन्दगी अपने ठिकाने तक नहीं पहुँची
किसी की मौत भी वादा निभाने तक नहीं पहुँची
बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची
ज़माने के लिए जो शख्स घुट-घुट कर मरा आख़िर
ख़बर उस शख्स की जालिम ज़माने तक नहीं पहुँची

4 comments:

Unknown said...

chirag, bahut achhi pahunch hai. zindabad.

Shikha Deepak said...

बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची

अच्छी लगी ये पंक्तियाँ। बढ़िया रचना।

Anonymous said...

बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची

-ye sher to behatrin hai chirag ji.
ham to apke prshansak ho gaye

Unknown said...

Outstanding Chirag

Very good

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