किसी की ज़िन्दगी अपने ठिकाने तक नहीं पहुँची
किसी की मौत भी वादा निभाने तक नहीं पहुँची
बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची
ज़माने के लिए जो शख्स घुट-घुट कर मरा आख़िर
ख़बर उस शख्स की जालिम ज़माने तक नहीं पहुँची
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4 comments:
chirag, bahut achhi pahunch hai. zindabad.
बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ। बढ़िया रचना।
बुजुर्गों की क़दम-बोसी मेरी फ़ितरत रही लेकिन
मेरी हिम्मत कभी उनके सिराहने तक नहीं पहुँची
-ye sher to behatrin hai chirag ji.
ham to apke prshansak ho gaye
Outstanding Chirag
Very good
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