मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

पाप

सिर्फ मतलब के लिए हर चाल चलना पाप है
हर दफ़ा दर देखकर मजहब बदलना पाप है
शायरी, दीवानगी, नेकी, इबादत, मयक़शी
और राहे-इश्क़ में गिर कर संभलना पाप है
काश बच्चों की तरह हालात भी ये जान लें
ख़्वाहिशों की तितलियों के पर मसलना पाप है
दौर इक ऐसा भी था, जब झूठ कहना मौत था
और अब ये हाल, सच की राह चलना पाप है
किस डरौने दौर में हम जी रहे हैं या ख़ुदा
घर में रहना ऐब है, घर से निकलना पाप है
पाप का दिल से निकल हरक़त में आना ज़ुर्म है
ज़ुर्म का भीतर ही भीतर दिल में पलना पाप है

1 comment:

Akhilesh Shukla said...

माननीय महोदय,
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अखिलेश शुक्ल

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