चेहरे स्याह-सफेद हैं, रंगे हुए अख़बार॥
भूले से भी मत करो, पॉवर का मिस-यूज़।
भस्म हो गई होलिका, उड़ा पाप का फ़्यूज़॥
वोट-पर्व से यूँ मिला, रंगों का त्यौहार।
देवदूत के रंग में, रंग गए चंद सियार॥
किंगफ़िशर पर चढ़ गया, देश-प्रेम का रंग।
राजघाट पर रोज़ अब, घुटा करेगी भंग॥
सिर्फ़ स्वदेशी माल से, अब कमाएंगे नोट।
बीयर-व्हिस्की छोड़ कर, ठर्रा करो प्रमोट॥
3 comments:
प्रिय चिरागजी,
"बुरा ना मानो होली है" बहुत अच्छी लगी । तीसरी लाईन का एक शब्द सुधार लें "भूले से भी मत करो"। बाक़ी की कवितायें,ग़ज़लें व दोहे भी बहुत उम्दा हैं। भविष्य में आप ढेरों यादगार चीज़ें लिखेंगे ऐसा मेरा मानना है। होली की शुभकामनाओं के साथ ।
अमृता
Phir se ek baar dil jeet liya...
alag alag rango ko ek hi thaal mein saja laaye....
wah wah chirag ji........
kya baat haa
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