मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

बुरा न मानो होली है…

अब ऐसे मनने लगा, होली का त्यौहार।
चेहरे स्याह-सफेद हैं, रंगे हुए अख़बार॥

भूले से भी मत करो, पॉवर का मिस-यूज़।
भस्म हो गई होलिका, उड़ा पाप का फ़्यूज़॥

वोट-पर्व से यूँ मिला, रंगों का त्यौहार।
देवदूत के रंग में, रंग गए चंद सियार॥

किंगफ़िशर पर चढ़ गया, देश-प्रेम का रंग।
राजघाट पर रोज़ अब, घुटा करेगी भंग॥

सिर्फ़ स्वदेशी माल से, अब कमाएंगे नोट।
बीयर-व्हिस्की छोड़ कर, ठर्रा करो प्रमोट॥

3 comments:

AMRITA BERA said...

प्रिय चिरागजी,
"बुरा ना मानो होली है" बहुत अच्छी लगी । तीसरी लाईन का एक शब्द सुधार लें "भूले से भी मत करो"। बाक़ी की कवितायें,ग़ज़लें व दोहे भी बहुत उम्दा हैं। भविष्य में आप ढेरों यादगार चीज़ें लिखेंगे ऐसा मेरा मानना है। होली की शुभकामनाओं के साथ ।
अमृता

शोभित जैन said...

Phir se ek baar dil jeet liya...
alag alag rango ko ek hi thaal mein saja laaye....

pooja said...

wah wah chirag ji........
kya baat haa

Text selection Lock by Hindi Blog Tips
विजेट आपके ब्लॉग पर