मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

नैन बरसते हैं

भीतर-भीतर मन गलता है, बाहर नैन बरसते हैं 
बीते पल आँखों के आगे, हर पल हलचल करते हैं 
टूटन, आह, चुभन, सिसकन में जीवन घुलता जाता है
लोग किसी के बिन जी लेना कितना सहज समझते हैं

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