मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

सपनों का कॅनवास

मैं खुली आँखों से
एक सपना देखता था अक्सर
बनाता था इक तस्वीर
अपनी ख्वाहिशों की
न जाने कब उभर आया
एक मुक़म्मल इंसान
मेरे मन के कॅनवास पर
न जाने क्यों
मैंने रख दिया
अपना दिल
बिना सोचे-समझे
इस इंसान के सीने में

...तुम
महज एक रिश्ता नहीं हो मेरे लिए
तुम मेरे सपनों का
कॅनवास हो

1 comment:

Anonymous said...

bahut sundar canvas hai chirag ji

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