मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

कोई सरापा ग़ज़ल

कहाँ अचानक मिले हैं हम तुम, यहाँ के मौसम में शायरी है
जवान रुत, मदभरी हवाएँ, ये शाम जैसे ठहर गई है
महकती रुत उनके सुर्ख नाज़ुक लबों को छूकर बहक रही है
सनम के भीगे बदन की लरजिश हमारे लहजे में आ गई है
जो सोच की हद में आ गया हो, वो चाहे जो भी हो आदमी है
किसी तरह भी समझने से जो, समझ न आए ख़ुदा वही है
शराब पीकर बहकने वालों को, उस नशे की ख़बर नहीं है
वो उम्र भर फिर संभल न पाया रसूल की जिसने मय चखी है
नज़र में शोखी, जुबां में नरमी, बदन में मस्ती, लबों पे सुर्ख़ी
ये हुस्ने-जाना है या ख़ुदा ने कोई सरापा ग़ज़ल कही है

1 comment:

सर्वत एम० said...

Shobhit jain ne aap kee taareef kee thee. main us par naaraaz hoon, usne tareef men itnee kanjoosee kyon kee. aap to isee umr men ustaad ho. mujhe apne baare men sochna padega.

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