मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

महावीर वाणी

क्षमा को भुलाओ नहीं, मति भरमाओ नहीं
घाव को कुरेदोगे तो खून बह जाएगा
जो हुआ सो भूल जाओ, आज में सुधार लाओ
निज को सँवारे वही वीर कहलाएगा
अम्बर को छोड़ के दिगम्बर को ओढ़ ले तो
धन्य तेरी जननी का क्षीर कहलाएगा
समता का भाव धरे, काऊ से न राग करे
तब ही 'चिराग़' महावीर कहलाएगा

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