गाँव का पुराना मकान
कच्चा-पक्का फ़र्श
दीमक लगी जर्जर चौखट
और देहरी के दोनों ओर
चिकनाई के
दो गोल निशान!
.....मुद्दत हुई
हर साल दीपावली पर
दीपक जलाते थे दो हाथ।
फिर अपने पल्लू की ओट में छिपाकर
हवा के झोंके से बचाते हुए
दीवार की आड़ में
हौले से देहरी पर
दो दीपक धर आते थे दो हाथ।
......
.........न जाने क्यों
आज फिर से
जीवंत हो उठी है माँ!
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8 comments:
सचमुच जीवंत हो उठी है माँ
chirag ji
apka observation bahut hi minute hai
u make my eyes wet.....
mind blowing
chirag bhai
ye aapi kavita nahi hai
ye to ham sabki kavita hai
badhai ho
bahut achchhi aur baarik kavita hai sir ji
very touchy
हरिसुमन जी
आपकी बात सर्वथा सटीक है
किसी भी रचनाकार की रचना तभी सार्थक होती है जब वह हर पाठक को अपनी सी लगे।
प्रशंसा का आपका अंदाज़ पसंद आया
jis tarah aapne ek maa ki bhav vbhor stithi sabdo me piroi ,muje kuch..bahot kuch...pichhla...chhuta hua....yaad aa gya. FROM [APKA ....NHI...TUMHARA KOI APNA, MGR BHULA HUA KOI APNA.....?]
jis tarah aapne ek maa ki bhav vbhor stithi sabdo me piroi ,muje kuch..bahot kuch...pichhla...chhuta hua....yaad aa gya. FROM [APKA ....NHI...TUMHARA KOI APNA, MGR BHULA HUA KOI APNA.....?]
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