मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

जैन धर्म

राष्ट्र के निमित्त बलिदान कैसे करते हैं
भामाशाह वाली वो कहानी मत भूलना
आस्था के बल पे जो कर्मों से जीत गई
महासती मैना जैसी रानी मत भूलना
सत्य के लिए जिन्होंने प्राण तक त्याग दिए
अकलंक जैसे महादानी मत भूलना
राजुल ने जहाँ धोई मेहंदी सुहाग वाली
गिरनार का वो लाल पानी मत भूलना

जियो और जीने दो की बात करते हैं हम
कहीं और ऐसा उपदेश नहीं मिलता
मृत्यु के क्षणों को भी महोत्सव सा मानते हैं
धरती पे ऐसा परिवेश नहीं मिलता
सारा सुख वैभव जो जीत के भी त्याग जाए
दूसरा तो कोई गोमटेश नहीं मिलता
तप-त्याग से यहाँ परमपद मिलते हैं
हाथी-घोड़े वालों को प्रवेश नहीं मिलता

पंथ हैं अनेक जिनमत में भले ही पर
मोक्षमार्ग वाला सुविचार बस एक है
सैंकडों हैं वाद-औ-विवाद फिर भी मगर
अहिंसा पे सबका विचार बस एक है
मान्यताएं सबकीं भले ही हों अनेक किंतु
पाँच पद वाला नवकार बस एक है
कैसे नर्कों से निर्वाण पहुँचेगा जीव
पूरे जिन-आगम का सार बस एक है

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