मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

महावीर वन्दना

त्रिशला के लाल तेरा कैसा है कमाल
नहीं तन पे रुमाल फिर भी तू महाराज है
जीत लिया काल काट कर्मों का जाल
नोच दिए सब बाल तेरे वीरता के काज हैं
तप का धमाल तेरे त्याग का धमाल
तेरी सधी हुई चाल तेरा दुनिया पे राज है
धरती निहाल, तो पे आसमां निहाल
सारी जगती निहाल तू त्रिलोक सरताज है

महावीर स्वामी बनें तेरे अनुगामी; सारी
दुनिया के प्राणी नाथ ऐसा वर दीजिए
बंद हो समर बहे प्रेम निर्झर; मिटे
चेहरों से डर कुछ ऐसा कर दीजिए
आसुरी प्रयास पर बाँसुरी विजयी बने
अधरों पे मीठी मुस्कान धर दीजीए
पाँच अणुव्रत दश-धर्मों की गूँज उठा
भारत को फिर से महान कर दीजिए

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