मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

अहिंसा

बारुदों के ढेर पर दुनिया खड़ी है देखो
ज़ख्मों का एक ही इलाज है अहिंसा
धाँय-धाँय, धड़-धड़, धूम-धूम की ध्वनि में
वीणा के सुरों-सा एक साज है अहिंसा
तोप-टैंक-बम-परमाणुओं की कुंडली में
साढ़ेसाती जैसी एक गाज है अहिंसा
ऐरों-गैरों-नत्थूखैरों कायरों का काम नहीं
वीर-महावीरों की आवाज़ है अहिंसा

1 comment:

Unknown said...

Bhadaii ho mahatma ji vapas agaye ..
Hum sabko vindan le ke border pe bheth jana chahiye yahi kehna chahte hai na aap ..
good goin keep it up.

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