हमने देखे हैं कई साथ निभाने वाले
तुमको भी बरगला लेंगे ये ज़माने वाले
बारिशों में ये नदी कैसा कहर ढाती है
ये तो बस जानते हैं इसके मुहाने वाले
धूप जिस पल मेरे आंगन में बिखर जायेगी
और जल जायेंगे दीवार उठाने वाले
मौत ने ईसा को शोहरत कि बुलंदी बख्शी
ख़ाक में मिल गए सूली पे चढ़ाने वाले
पहले आंखों को तो सिखला ले दिखावे का हुनर
झूठी बातों से हकीकत को छिपाने वाले
सच कि राहों पे इक सुकून लाख मुश्किल हैं
सोच ले दो घड़ी ए जोश में आने वाले
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
- प्रकाशित कविताएँ: 104
- प्रकाशित प्रतिक्रियाएँ: 116
No comments:
Post a Comment