पुल बनाओ तो सही इस फ़ासले के सामने
मुश्किलें ख़ुद हल बनेंगी मसअले के सामने
आंधियाँ राहों में बिछ जायेंगी सजदे के लिए
आसमां छोटा पड़ेगा हौसले के सामने
जब जवानी चल पड़ेगी बांधकर सर पर कफ़न
कौन आएगा फिर उसके फ़ैसले के सामने
हिम्मतों ने ताक़ पर रखे ज़माने के उसूल
ताश के घर कब टिके हैं जलजले के सामने
रात भर लड़ता रहा था जो अंधेरे से 'चिराग़'
झुक गया सूरज भी ऐसे दिलजले के सामने
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
- प्रकाशित कविताएँ: 104
- प्रकाशित प्रतिक्रियाएँ: 116
No comments:
Post a Comment