मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

वक्त

लड़खड़ाकर गिरे नहीं होते
ग़र तेरे आसरे नहीं होते
कम-नसीबी का दौर है वरना
हम भी इतने बुरे नहीं होते

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