मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

बँटवारा

जब से आँगन में हुए, दीवारों के ठाठ
तब से मंहगे हो गए, छोटे-छोटे बाट

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