मन के बाग़ में बिखरी है भावनाओं की ओस। …………कुछ बूंदें छूकर मैंने भी नम कर ली हैं हथेलियाँ …………और लोग मुझे कवि समझने लगे!

एकता

एक संग आकर कहें, कातिक औ रमजान।
एक जिल्द में बाँध दो, गीता और कुरान॥

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

bhawnaaon ki is os me sanjivni hai.......bahut sundar

ANTRA-DHWANI said...

chirag us chandan ke saman hai jo ghisne se aur mehakta hai,,,,ye doha iska praman hai

Text selection Lock by Hindi Blog Tips
विजेट आपके ब्लॉग पर