मेरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समंदर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर आँख भरकर देख लेना
मेरी बातों में राहें बोलतीं हैं
मेरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना
मुझे इक बेतआबी दे गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मेरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना
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7 comments:
bhai waah bahut khoob likha hai bhai
chirag ji
itna intzaar mat karaaya kijiye
ab aadat ho gayi hai aapki kavitaaon ki
thodi speed badhao plz
"सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना"
"न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना"
waah!
nice, achi lagi
bahut khoob
You are great sir
Waah!
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