If you are looking for the contact details of poets just dial +91 9868573612 to book any Hasya Kavi Sammelan along with various poets of the country i.e. Surender Sharma, Kumar Vishwas, Shailesh Lodha, Ashok Chakradhar, Pradeep Chobey, Chirag Jain, Anamika Ambar, Pratap Foujdar, Hari om Panwar, Arun Gemini, Mahendra Ajnabi, Sunil Jogi, Sarita Sharma, Surendra Dubey, Kirti kale, Vishnu Saxena, Praveen Shukla, Vinit Chauhan, Ashish Anal, Tej Narain Sharma, Sampat Saral, Shambhu Shikhar, Padmini Sharma, Gauri Mishra, Bhuvan Mohini, Suman Dubey, Mamta Sharma, Sudeep Bhola, Dinesh Bawra, Dinesh Raghuvanshi & all other hindi poets.
Laugh India Laugh Chirag Jain
Laughter Artish Chirag Jain in the episode of Laugh India Laugh of Life OK
ब्लॉग से वेबसाइट तक
प्रिय पाठकों!
"काव्यांचल", जो कि अब तक आपको सिर्फ़ मेरी रचनाओं से वाक़िफ़ कराता था, अब अपना दायरा बड़ा कर रहा है और ब्लॉग की बगिया से निकल कर वेबसाइट के बाग़ तक पहुँच गया है। इस बाग़ में आपको अनेक जाने-अनजाने रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगीं।
यहाँ से आप अपने पसंदीदा कवियों को सुन भी सकते हैं, देख भी सकते हैं और उनकी कविताओं पर आधारित वालपेपर्स से अपना डेस्कटोप भी सजा सकते हैं।
आशा है कि आपका समर्थन और सहयोग हमें मिलता रहेगा।
-आपका अपना
चिराग़ जैन
http://www.kavyanchal.com/
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-आपका अपना
चिराग़ जैन
http://www.kavyanchal.com/
मेरी राहों पे चलकर देख लेना
मेरी आँखों का मंज़र देख लेना
फिर इक पल को समंदर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर आँख भरकर देख लेना
मेरी बातों में राहें बोलतीं हैं
मेरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना
मुझे इक बेतआबी दे गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मेरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना
फिर इक पल को समंदर देख लेना
सफ़र की मुश्क़िलें रोकेंगी लेकिन
पलटकर इक दफ़ा घर देख लेना
किसी को बेवफ़ा कहने से पहले
ज़रा मेरा मुक़द्दर देख लेना
बहुत तेज़ी से बदलेगा ज़माना
कभी दो पल ठहरकर देख लेना
हमेशा को ज़ुदा होने के पल में
घड़ी भर आँख भरकर देख लेना
मेरी बातों में राहें बोलतीं हैं
मेरी राहों पे चलकर देख लेना
न पूछो मुझसे कैसी है बुलन्दी
मैं जब लौटूँ मेरे पर देख लेना
मुझे इक बेतआबी दे गया है
किसी का आह भरकर देख लेना
ज़माने की नज़र में भी हवस थी
तुम्हें भी तो मेरे परदे खले ना
मिरे दुश्मन के हाथों फैसला है
क़लम होगा मिरा सर देख लेना
एक प्यादे से मात पलटेगी
हर नई रुत के साथ पलटेगी
ख़ुश्बू-ए-क़ायनात पलटेगी
ये सियासत है इस सियासत में
एक प्यादे से मात पलटेगी
किसकी बातों का क्या यकीन करें
पीठ पलटेगी बात पलटेगी
रंग परछाई तक का बदलेगा
सुब्ह होगी तो रात पलटेगी
तुम संभल कर बस अपनी चाल चलो
इक न इक दिन बिसात पलटेगी
वक्त ज़ब-जब भी करवटें लेगा
ज़िन्दगी साथ-साथ पलटेगी
ख़ुश्बू-ए-क़ायनात पलटेगी
ये सियासत है इस सियासत में
एक प्यादे से मात पलटेगी
किसकी बातों का क्या यकीन करें
पीठ पलटेगी बात पलटेगी
रंग परछाई तक का बदलेगा
सुब्ह होगी तो रात पलटेगी
तुम संभल कर बस अपनी चाल चलो
इक न इक दिन बिसात पलटेगी
वक्त ज़ब-जब भी करवटें लेगा
ज़िन्दगी साथ-साथ पलटेगी
अहसास का होना अच्छा
उनको लगता है ये चांदी औ' ये सोना अच्छा
मैं समझता हूँ कि अहसास का होना अच्छा
मैंने ये देख के मेले में लुटा दी दौलत
मुर्दा दौलत से तो बच्चों का खिलोना अच्छा
जिसके आगोश में घुट-घुट के मर गए रिश्ते
ऐसी चुप्पी है बुरी; टूट के रोना अच्छा
जिसके खो जाने से रिश्ते की उमर बढ़ जाए
जितनी जल्दी हो उस अभिमान का खोना अच्छा
अश्क़ तेज़ाब हुआ करता है दिल में घुटकर
दिल गलाने से तो पलकों का भिगोना अच्छा
मिरे होते हुए भी कोई मिरा घर लूटे
फिर तो मुझसे मिरे खेतों का डरोना अच्छा
जबकि हर पेड़ फ़क़त बीच में उगना चाहे
ऐसे माहौल में इस बाग़ का कोना अच्छा
राम ख़ुद से भी पराए हुए राजा बनकर
ऐसे महलों से वो जंगल का बिछोना अच्छा
उसके लगने से मेरा मन भी सँवर जाता था
अब के श्रृंगार से अम्मा का दिठौना अच्छा
मैं समझता हूँ कि अहसास का होना अच्छा
मैंने ये देख के मेले में लुटा दी दौलत
मुर्दा दौलत से तो बच्चों का खिलोना अच्छा
जिसके आगोश में घुट-घुट के मर गए रिश्ते
ऐसी चुप्पी है बुरी; टूट के रोना अच्छा
जिसके खो जाने से रिश्ते की उमर बढ़ जाए
जितनी जल्दी हो उस अभिमान का खोना अच्छा
अश्क़ तेज़ाब हुआ करता है दिल में घुटकर
दिल गलाने से तो पलकों का भिगोना अच्छा
मिरे होते हुए भी कोई मिरा घर लूटे
फिर तो मुझसे मिरे खेतों का डरोना अच्छा
जबकि हर पेड़ फ़क़त बीच में उगना चाहे
ऐसे माहौल में इस बाग़ का कोना अच्छा
राम ख़ुद से भी पराए हुए राजा बनकर
ऐसे महलों से वो जंगल का बिछोना अच्छा
उसके लगने से मेरा मन भी सँवर जाता था
अब के श्रृंगार से अम्मा का दिठौना अच्छा
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